फ़ेसबुक ने कुछ साल पहले अपने यूजर्स
को यह वि
कल्प दिया था कि वे अपने प्रोफ़ाइल में उन भाषाओं का ज़िक्र कर
सकते हैं जिनको वे जानते हैं.
यह विकल्प मिलते ही लाखों लोग रातों-रात बहुभाषी हो गए. लोगों ने एक साथ कई विदेशी भाषाएं जानने के दावे कर दिए.
सोशल
मीडिया पर ऐसे दावे करने वाले कई लोग मेरे जानने वाले भी थे. मैंने उनके
मुंह से पहले कभी किसी विदेशी भाषा का एक शब्द भी नहीं सुना था.
यह फ़ेसबुक तक ही सीमित नहीं है. नौकरी के लिए सीवी ( ) बनाते समय उसमें भी बढ़-चढ़कर दावे कर दिए जाते हैं.
लिंक्डइन जैसी जॉब साइट्स के प्रोफ़ाइल में भी कई विदेशी भाषाओं का ज़िक्र कर दिया जाता है. ऐसा करना नुकसानदेह भी हो सकता है.
नौकरी के आवेदनों में बड़बोलापन सामान्य है. 2015 में 'करियर बिल्डर'
नामक एजेंसी ने अमरीका में नौकरी का इंटरव्यू लेने वाले करीब 2000 मैनेजरों
के बीच एक सर्वे किया था. इसमें 56 फ़ीसदी मैनेजरों ने बताया कि उन्होंने
आवेदकों को झूठे दावे करते हुए पकड़ा.
आवेदक पिछली नौकरी के पद और ज़िम्मेदारियों के बा
रे में ग़लत जानकारियां देते हैं.
कई
आवेदक यूनिवर्सिटी डिग्री के बारे में झूठे दावे करते हैं. 63 फ़ीसदी
आवेदक अपनी सीवी में अतिरिक्त योग्यता जोड़ देते हैं, जो उनके पास नहीं
होती.
कवर लेटर और सीवी का टेंपलेट बनाने वाली कंपनी 'ह्लूम' ने भी 2000 मैनेजरों के बीच एक सर्वे कराया.
'ह्लूम'
के सर्वे से पता चला कि आवेदक जिन चीज़ों के बारे में सबसे ज़्यादा झूठ
बोलते हैं, उनमें दूसरे नंबर पर है विदेशी भाषा में पारंगत होने का दावा
करना. इससे ज़्यादा झूठ केवल किसी यूनिवर्सिटी की डिग्री होने के बारे में
बोला जाता है.
सवाल है कि भाषा ज्ञान के बारे में झूठे दावे करने से फ़ाय
दा क्या है?
पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में मैनेजमेंट के प्रोफ़ेसर मॉरिस श्वेत्ज़र रबर का उदाहरण देकर इसे समझाते हैं.
भाषा
ज्ञान के बारे में बोला गया झूठ सफ़ेद झूठ नहीं होता. इसमें व्यक्ति कुछ
जानता तो है, लेकिन कितना जानता है यह पक्के तौर पर तय नहीं किया जा सकता.
जैसे
यदि किसी ने कॉलेज या यूनिवर्सिटी में थोड़ी स्पेनिश पढ़ी है, लेकिन उसके
बाद कभी बोली नहीं. उस व्यक्ति ने अगर ग्राफिक डिजाइनर की नौकरी के आवेदन
में स्पेनिश जानने का दावा किया है तो वह झूठ भी नहीं है और सच भी नहीं है.
अनुवादक की नौकरी या ऐसी ही कुछ ख़ास नौकरियों में द्विभाषी या बहुभाषी होने का टेस्ट लिया जा सकता है. लेकिन हर जगह ऐसा नहीं होता.
सीवी में लोग उसी वजह से झूठ बोलते हैं जिस वजह से फ़ेसबुक पर झूठ बोलते हैं. वे दूसरों को प्रभावित करना चाहते हैं.
अब
सवाल यह है कि अगर आपने अपनी योग्यता के बारे में मामूली झूठ भी बोला है
और अगर आप पकड़ लिए गए तो जो लोग आपको नौकरी पर रखने वाले थे, उन पर क्या
असर पड़ेगा.
श्वेत्ज़र कहते हैं कि कुछ लोग सीवी के हॉबी वाले सेक्
शन में झूठ लिख देते हैं. ऐसा करके वे अपनी छवि बनाना चाहते हैं.
इंटरव्यू
लेने वाले अक्सर इनको तवज्जो नहीं देते. लेकिन जैसे ही संदेह होता है कि
यहां झूठे दावे किए हैं तो इससे दूसरे संदेह भी पैदा होते हैं. वे किसी ऐसे
व्यक्ति को अपनी टीम में शामिल क्यों करें जो भरोसेमंद ना हो?
श्वेत्ज़र
कहते हैं, "अगर मैं किसी रेस्त्रां में इटैलियन में ऑर्डर दे रहा हूं तो
मैं अपने बारे में यह कह सकता हूं कि मैं यह भाषा जानता हूं. लेकिन क्या
मैं सचमुच इटैलियन जानता हूं?"
खुद के बारे में भ्रम पालने का कोई
नुकसान नहीं है. लेकिन अगर अपने भ्रम को प्रमुखता से बताया जाए या फ़ायदा
लेने की कोशिश की जाए तो चीजें उलटी पड़ सकती हैं.
फ्लोरिडा की हाउस
ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स की एक उम्मीदवार ने एक यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के
झूठे दावे किए तो उनको रेस से बाहर होना पड़ा.
महिला ने दावा किया था
कि उन्होंने एक यू
निवर्सिटी से डिग्री हासिल की है. उन्होंने दीक्षांत
समारोह में हिस्सा लिया था और उनके पास गाउन और कैप पहने हुए तस्वीर भी थी.
लेकिन यूनिवर्सिटी ने उनके दावे को झुठला दिया.
अगर आपने इटैलियन की
थोड़ी-बहुत पढ़ाई की है और रोम के किसी रेस्तरां में इटैलियन में ब्रूशेटा
का ऑर्डर कर रहे हैं तो स्वाभाविक है कि आप खुद को इटैलियन की जानकारी
रखने वाला समझ सकते हैं.
लेकिन किसी भा
षा में पारंगत कहलाने के लिए इतना ही काफ़ी नहीं है. यह ग़लती आपकी संभावनाओं को बहुत नुकसान पहुंचा सकती है.