Wednesday, September 12, 2018

यानी इससे जो पानी निकलेगा वो सस्ता भी पड़ेगा

मृत्यु अटल है. एक दिन यह आनी ही आनी है. टाइम मैनेजमेंट का यह अहम पहलू है, जिसे नज़रअंदाज कर दिया जाता है.
एयॉन कहते हैं, "पहले कब्रिस्तान शहरों में होते थे, लेकिन अब वो नज़रों से दूर होते हैं. इससे हम मृत्यु के बारे में सोच नहीं पाते."
"आधुनिक समाज में मृत्यु की याद दिलाने वाली चीजें कम हो रही हैं. हम यह भूल जाते हैं कि हमारे पास वक़्त कम है और जितना वक़्त है उसमें हमें खुश रहना है."
मृत्यु के बारे में गंभीरता से सोचने के बाद एयॉन ने दूसरों की उम्मीदों को पूरा करना छोड़ दिया और अपने बारे में खुद अपने नियम बनाए.
एयॉन पूरे 9 घंटे सोने के बाद सुबह 9 बजे उठते हैं और दिन में सिर्फ 4 घंटे काम करते हैं. वह दिन में सिर्फ़ एक बार ई-मेल चेक करते हैं, वह भी कामकाजी दिनों में. वह जिम जाते हैं और रोज पढ़ते हैं. यह पढ़ाई उन्हें शोध के लिए नये विचार देती है.
एयॉन कहते हैं, "आपके समय को बांधने की जगह ये टूल्स आपके जीवन पर आपका नियंत्रण बनाने वाले होने चाहिए."
क्या यह नौकरी मेरे लिए है? क्या मैं अपनी पत्नी से अलग हो जाऊं? क्या मुझे बच्चे की जरूरत है? एयॉन के मुताबिक ये सारे सवाल टाइम मैनेजमेंट से जुड़े हैं, लेकिन लोग इनके बारे में सोचते नहीं, क्योंकि यह सब सोचना उनको मुश्किल लगता है."
ज़िंदगी के बड़े सवालों को छोड़कर कुछ आसान उपायों की तरफ देखते हैं. पहली बात यह गांठ बांध लीजिए कि उत्पादकता की एक सीमा है. दूसरी बात यह कि आपके व्यक्तित्व और आदतों के मुताबिक कोई टूल ढूंढना मुश्किल है.
किसी भी तरह के टूल से दूर रहने वाले लोग मानते हैं कि व्यवस्थित रहने भर से उनकी मुश्किल आसान हो जाती है.
जो लोग रूटीन के पाबंद हैं, उनके लिए एयॉन की सलाह है कि "उन्हें कभी-कभी यह देखना चाहिए कि कैलेंडर के बिना जीवन कैसा होता है."
टाइम मैनेजमेंट टूल्स का विज्ञापन करने वाले वीडियो और ब्लॉग ज़िंदगी को आसान बनाकर देखते हैं. लेकिन जिसने भी इन ऐप्स का इस्तेमाल शुरू किया, उनका जीवन और कठिन हो गया.
कैले अब कागज-कलम से स्प्रैडशीट बनाती हैं. उनको ऐप्स से नफरत हो गई है. बोर्डेवे ने अपने लिए 5 सेकेंड का एक नियम बनाया है.
किसी भी मुश्किल काम को करने से पहले बोर्डेवे आंखें बंद करके गहरी सांस लेती हैं, एक से पांच तक गिनती हैं और काम में लग जाती हैं.
याद रखिए कि खुद के लिए ज्यादा कठोर नहीं बनना है. अपने आप को कोसना आपकी उत्पादकता के लिए नुकसानदेह है. यह आपके दिमाग पर बोझ बढ़ाता है. खुद पर भी थोड़ा तरस खाइए.
हर जगह की हवा में पानी होता है. फिर वो तपते रेगिस्तान में बहने वाली हवा हो, या फिर लगातार बारिश वाले इलाक़े की. एक अंदाज़े के मुताबिक़ दुनिया भर में 3100 क्यूबिक मील या 12 हज़ार 900 क्यूबिक किलोमीटर पानी, हवा में नमी के रूप में पैबस्त है.
पानी की ये तादाद कितनी है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि उत्तरी अमरीका की सबसे बड़ी झील लेक सुपीरियर में भी इतना पानी नहीं है.
लेक सुपीरियर में 11 हज़ार 600 क्यूबिक किलोमीटर ही पानी है. वहीं अफ्रीका की विशाल झील विक्टोरिया में महज़ 2700 क्यूबिक किलोमीटर पानी है.
ब्रिटेन की डरावनी झील लॉक नेस में जितना पानी है, उससे 418 गुना ज़्यादा पानी हवा में क़ैद है.
याद रखिए हम बादलों की बात नहीं कर रहे हैं. हम हवा में क़ैद उस पानी की बात कर रहे हैं, जो नमी के रूप में होता है. इस पानी को आप उस वक़्त देखते हैं, जब कोल्ड ड्रिंक से भरे गिलास के ऊपर कुछ बूंदें जमा हो जाती हैं. हवा में पैबस्त ये पानी आपको घास पर ओस की बूंदों के तौर पर भी दिखाई देता है.
पानी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अब हवा में मौजूद इस मीठे पानी पीने को निकालने की जुगत भिड़ाई जा रही है.
हवा से पानी निचोड़ने की इस रेस में जो मशीन सब से आगे है, उसका नाम है 'वाटर फ्रॉम एयर. अगर ये मशीन कारगर रही, तो दुनिया में पीने के पानी की समस्या का एक बढ़िया तोड़ निकल आएगा.
कहा जा रहा है कि 2025 तक दुनिया की तेज़ी से बढ़ती आबादी का दो तिहाई हिस्सा, पानी की किल्लत से दो-चार होगा.
आज की तारीख़ में दुनिया में 2.1 अरब लोग साफ़ पीने के पानी से महरूम हैं. दुनिया के सबसे ग़रीब लोगों को पीने के पानी की सबसे ज़्यादा क़ीमत चुकानी पड़ रही है.
वो ये जानते हुए पीने का पानी इस्तेमाल करते हैं कि ये उनके लिए ख़तरनाक हो सकता है. प्रदूषित पानी पीने की वजह से हर साल दुनिया भर में क़रीब 5 लाख लोग डायरिया से मर जाते हैं.
ग़रीब देशों के मुक़ाबले ज़्यादा पानी इस्तेमाल करने वाले अमीर मुल्कों में उद्योगों और खेती में पानी का बेतहाशा इस्तेमाल होता है. नतीजा ये कि इन देशों में नदियों का पानी और भूगर्भ जल के स्रोत सूखते जा रहे हैं.
पीने के पानी को लेकर भरोसे का मसला भी है. प्रशासनिक अधिकारी जिस पानी के साफ-सुथरे होने का दावा करते हैं, वो अक्सर सफ़ाई के पैमानों पर खरा नहीं उतरता. अमरीका के फ्लिंट नाम के शहर में जिस पानी को साफ़ बता कर सप्लाई किया जा रहा था, उसमें रेडियोएक्टिव तत्व, आर्सेनिक और सीसा पाए गए.
यही वजह है कि मध्यम वर्ग पीने के लिए बोतलबंद पानी का इस्तेमाल बढ़ाता जा रहा है. दुनिया भर में पीने के बोतलबंद पानी का कारोबार 10 फ़ीसद सालाना की दर से बढ़ रहा है.
2017 में 391 अरब लीटर बोतलबंद पानी दुनिया भर में बेचा गया था. ये डेढ़ लाख ओलंपिक स्विमिंग पूलों में भरे पानी की मात्रा से भी ज़्यादा था.
ज़ाहिर है कि आज इंसान को पीने के पानी का ऐसा स्रोत चाहिए, जो बीमार न करे, गरीबों की पहुंच में हो और रईस भी उसे इस्तेमाल करना चाहें.
वैसे हवा से पानी खींचना कोई नया ख़्याल नहीं है. हवा से नमी सोखने की मशीनें बहुत पहले से इस्तेमाल होती आई हैं. लेकिन, ये मशीनें, हवा से जो पानी खींचती हैं, वो न तो साफ़ होता है, न ही उसमें वो मिनरल होते हैं, जिनकी हमें ज़रूरत है.
लेकिन अब नमी सोखने वाली इन मशीनों की तकनीक से कई कंपनियां ऐसे यंत्र बनाने में जुटी हैं, जो हवा की नमी को सोख कर हमें पानी की सप्लाई दे सके. हवा से नमी सोखने वाली मशीनों को डिह्यूमिडीफ़ायर कहते हैं. ये हमारे घरेलू फ्रिज की तरह काम करती हैं.
वाटर फिल्टर फ्रॉम एयर मशीन भी ऐसे ही काम करती है. लेकिन, इससे जो पानी जमा होता है, उसे फिल्टर किया जाता है, अल्ट्रावायोलेट किरणों से ट्रीट किया जाता है. फिर उसमे ज़रूरी मिनरल मिलाकर पीने के लायक़ बनाया जाता है.
कनाडा के जल सलाहकार रोलां वाल्ग्रेन दुनिया भर में इस्तेमाल हो रही डब्ल्यूएफए तकनीक पर नज़र रखते हैं और इसे अपनी वेबसाइट  . में डालते हैं. उनके डेटाबेस में फिलहाल 71 कंपनियां दर्ज हैं.
इनमें से 64 मेकेनिकल रेफ्रिजरेशन तकनीक का इस्तेमाल कर के हवा से पानी निकाल रही हैं. रोलां वाल्ग्रीन कहते हैं कि एक लीटर पानी ऐसे निकालने में 0.4 किलोवाट बिजली ख़र्च होती है. अमरीका में इतनी बिजली की क़ीमत 5.2 सेंट है.
दक्षिणी अफ्रीकी कंपनी वाटर फ्रॉम एयर घरों में इस्तेमाल के लिए वाटर कूलर बनाती है. इसकी मशीन से रोज़ाना 32 लीटर पानी जमा किया जा सकता है. इस कंपनी के वाटर कूलर को चलाने के लिए बार-बार पानी की बोतल नहीं लगानी पड़ती. कंपनी का वाटर कूलर अपनी ज़रूरत का पानी हवा से सोख लेता है.
इसी तरह एक भारतीय कंपनी वाटरमेकर छोटे से लेकर ट्रकों के आकार के वाटर कूलर बेचती है, जो एक गांव की ज़रूरतें पूरी कर सकती है.
हवा से पानी सोखने वाली ये मशीनें तभी काम करती हैं, जब हवा में भरपूर नमी हो. ऐसी ज़्यादातर मशीनें 60 फ़ीसद नमी वाले माहौल में अच्छा काम करती हैं. तो, अगर आप समुद्र के किनारे के किसी शहर में रहते हैं, तो वहां नमी 90 फ़ीसद तक होती है.
मगर आप रेगिस्तानी इलाक़ों में रहते हैं, तो वहां नमी तो बहुत कम होती है.
एक ब्रिटिश कंपनी रिक्वेंच ने इसका भी तोड़ निकाल लिया है. इसने एक कंटेनर के आकार की मशीन बनाई है, जो केवल पंद्रह फ़ीसद नमी में भी काम करती है.
अगर हवा में नमी ज़्यादा होती है, तो ये मशीन रोज़ाना 2 हज़ार लीटर तक पानी निकाल सकती है. वहीं कम नमी की सूरत में भी ये मशीन कम से कम 500 लीटर पानी तो जमा कर ही लेती है, हवा से.
अब हवा से पानी सोखने के लिए एक और तकनीक इस्तेमाल हो रही है. ये स्पंज की तरह काम करती है, जिसे हवा से नमी सोखने के लिए बिजली भी नहीं चाहिए.
रोलां वाल्ग्रीन कहते हैं कि इस मशीन को बनाने में बहुत ऊंचे दर्जे की तकनीक और सामान नहीं चाहिए. यानी इससे जो पानी निकलेगा वो सस्ता भी पड़ेगा.

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